Monday 6 August 2012



पहाड़-सा भारी-कठोर
बीहड़ों-सा दुर्गम
थूहर के जंगल-सा फैला
बाढ़ सा प्रलयंकारी
प्रचंड ज्वाला मुखी -सा भयंकर
असहनीय ताप धमन भट्टी -सा भीतर भीतर
सुलगता एक महा-कुण्ड
बवंडर-भूचाल सा यह समय -----उत्तर-आधुनिक
रीढ़ पर वार करता
सूझता नहीं हाथ को हाथ
राहें विभ्रमकारी पथ-भ्रष्ट करती पग-डंडियाँ अनेक
कहाँ जाऊं ,आँखों पर पट्टी बंधे बैल-सा यह उत्तर आधुनिक समय
विमर्श-जालों में फंसा लहुलुहान हारिल पक्षी -सा
समय को बेचते बधिक मार्ग-दर्शक
बौद्धिक गुलामों का दास युग जैसा
खरीद -फरोख्त की तराजू पर टिके न्याय सा हर घड़ी बिकने को तैयार
दिन-पल-निमिष
एक भयानक-सा दैत्य महाकार रगड़ता मेरा तन-मन
इसके पंजों में छिपा आकर्षण
मुझे धकेलता लगातार इसकी ओर
झूठे और नकली व्यक्तित्वों के गिरोह हर जगह
समय की वल्गाओं को हाथों में थामे
मैं सर झुकाता होता लोट मलोट इसके चरणों में हिम्मतपस्त -सा
मौन धारण करता सही सवालों पर

सुदूर दीप्त-आनन् सा
एक आकर्षण-जाल
पतंगे टपकते-मरते
बरसाती-समय की
रोशनी के व्यूह पर जैसे
अपनी गतियों ,चालों और तरफ्दारियों को बदलता रोज
कैसे समझूं -समझाऊं
नहीं यह हितैषी हमारा कभी रहा
इसके आग्नेयास्त्र नहीं हमारे काम के
इनकी कीमत आत्माओं का सौदा करके चुकाई जा सकती है
इतना सौदा कभी नहीं हुआ आत्माओं का
इन बाज़ारों में रोज बेचने आते आत्माएं धनिक होने की चाह में डूबे
जैसे रोटी के लिए चौराहों पर खड़े मजूर सौदा करते शरीर का
छिपे-छिपे चलता कारोबार आत्माओं का
इस उत्तर-आधुनिक तेजस्वी समय में |

No comments:

Post a Comment