Thursday, 10 April 2014

कामां ,जिसे पौराणिक नगरी होने का गौरव हासिल है ,मध्यकाल से पूर्व की प्राचीन नगरी है। इसका ब्रज के वनों में केंद्रीय स्थान रहा है। इसे कामवन इसीलिये कहा जाता है।  कोकलावन इसके बहुत नज़दीक है। वहाँ नंदगांव होकर जाते हैं। नंदगांव , कामां के पास सीमावर्ती  कस्बा  है ,यद्यपि उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद में आता है।आज भी नंदगांव के हुरियार , बरसाने की हुरियारिनों से लट्ठमार होली खेलने के लिए जाते हैं और रसिया गाकर आपस में सात्त्विक प्रेमदान की परम्परा का निर्वाह करते हैं।  ब्रज-संस्कृति में प्रेम तत्त्व ही प्रधान रहा है , जिसके प्रति रसखान जैसा पठान कवि इतना सम्मोहित हो गया कि उसने यहीं का होकर रहने की कामना की।   कामवन  अपने चौरासी कुंडों ,चौरासी खम्भों और चौरासी मंदिरों के लिए जाना जाता है।  विमल कुण्ड यहां सरोवर मात्र न होकर लोक ---समाज के लिए आज भी तीर्थ स्थल की तरह है ।  आज भी यहां यह लोक मान्यता है कि आप चाहे चारों धाम की तीर्थ-यात्रा कर आएं , यदि आप विमल कुण्ड में नहीं नहाये तो आपकी तीर्थ ---भावना अपूर्ण रहेगी।
  शुद्धाद्वैत दर्शन के प्रणेता और पुष्टिमार्ग के संचालक तथा सूर सरीखे महान कवि के प्रेरणा स्रोत वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ ने जब अष्टछाप का गठन किया तो जिन वात्सल्य रूप कृष्ण अर्चना की नयी भक्ति पद्धति विकसित की ,जिसमें सवर्णों के साथ दलितों और स्त्रियों तक को जगह दी गयी ,यद्यपि मीरा जैसी स्वाधीनचेता कवयित्री आग्रह के बावजूद इसमें शामिल नहीं हुई ,इस नगर में उनकी दो पीठ स्थापित है ----एक चन्द्रमा जी और दूसरी मदन मोहन जी। बहरहाल कामां का इतिहास बहुत समृद्ध और सांस्कृतिक तौर पर बहुत उन्नत रहा है।
इस नगरी का जयपुर रियासत से अठारहवीं सदी  में तब रिश्ता हुआ ,जब सवाई जय सिंह ने यहाँ अपने एक सूबेदार कीरत सिंह को भेजा , जिसका परिणाम भरतपुर रियासत के जन्म के रूप में हुआ। कदाचित उसी समय कालवाड़ से हमारे पूर्वज यहां आकर बसे  और उन्होंने कामां से पांच कोस दूर जुरहेडा गाँव बसाया।
            भाई प्रेम चंद  गांधी का शुक्रिया कि उन्होंने जयपुर के संगी---साथियों से मिलने का मौक़ा सुलभ कराया।अन्य सभी दोस्तों के प्रति बहुत बहुत आभार। 

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