Thursday, 10 April 2014

प्रिय भाई शम्भु  नाथ जी ,
आपका हिंदी साहित्य कोश  निर्माण में सहभागिता का आमंत्रण पाकर खुशी तो हुई ही ,उत्साहवर्धन भी हुआ। हिंदी के अपने क्षेत्र तो अपने दायित्त्वों  को पूरी तरह से भूले हुए हैं। पहले भी कोलकाता इस मामले में अग्रणी रहा है। हिंदी को जो प्रोत्साहन आपके यहां से मिला है ,वह आज भी उल्लसित करता है। रवीन्द्र न होते तो हम कबीर को शायद ही जान पाते।  आप कोश -निर्माण के काम को हाथ में लेकर हिंदी--हित  का बहुत महत्त्वपूर्ण और बेहद जरूरी काम पूरा करेंगे। मैं अपनी हैसियत के हिसाब से इसमें जरूर करना चाहूंगा।
आपने मुझसे राजस्थान की लोक-भाषाओं  ,लोक--संस्कृतियों ,और लोक कलाओं  पर लिखने को कहा है। इनकी सूची इस प्रकार से है ------
लोक भाषाएँ -------मारवाड़ी ,मेवाड़ी ,ढूंढाड़ी ,हाडौती ,शेखावाटी ,मेवाती और ब्रज।
लोकसंस्कृतियाँ --------उक्त लोकभाषाओं से सम्बंधित लोकसंस्कृतियां ही यहां की प्रमुख लोकसंस्कृतियां हैं।
लोककलाएं--------लोकसंगीत और लोक नाट्य ,---जिनमें ख्याल की कला मुख्य रही है। ख्यालों की कई शैलियाँ यहां प्रचलित रही हैं ,जिनके ऊपर सम्बंधित अंचलों के विशेषज्ञ लेखकों से लिखवाया जाना उचित होगा।
मैं इनमें राजस्थान के पूर्वी अंचल की लोक भाषाओं , लोक संस्कृतियों और लोक कलाओं पर लिख सकता हूँ। इनमें मेवातीऔर ब्रज से सम्बंधित प्रविष्टियाँ हो सकती हैं।
आप जो कहेंगे उस काम को करने का पूरा प्रयास करूंगा। शुक्रिया। 
                                                                                            जीवन सिंह ,अलवर , राजस्थान

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