Monday, 14 April 2014

मित्रवर कर्ण  सिंह जी ने मेरी बात में 'गया सब कुछ गया' का अर्थ खोजा है। मेरी दृष्टि में यह आज की  कवित्ता के रूप-विधान को लेकर मेरे मन में उत्पन्न हुआ प्रश्न है। कविता शब्द का प्रयोग कविता के लिए कब से शुरू हुआ ,यह तो खोज का विषय है किन्तु हज़ारों सालों से यही  शब्द चला आरहा है।उसके निरंतर परिवर्तित होते रहने के बावजूद।  इसी तरह से छंद भी।  आदिकवि वाल्मीकि के मुख से एक निश्चित लय में जो बात निकली , वही उनके लिए और बाद में दूसरों के लिए भी छंद बन गयी।  जब वही छंद अपने समय को व्यक्त करने में बाधक बनने लगा ,उसकी एक रूढ़ि बन गयी तो मुक्तिशोधक कवि ने छंद को मुक्त कर लिया और उसको अपनी एक खुली हुई  लय दे दी।  एक निश्चित -क्रम में शब्दों का स्थापत्य ही तो कविता में  लय पैदा करता है।  जो गद्य की लय से उसे अलग करता है।  कविता का शब्द-विन्यास गद्य के शब्द विन्यास से भिन्न प्रकार का होता है , यद्यपि गद्य--काव्य नाम की विधा भी अलग से चली ,किन्तु कविता के सामने वह ज्यादा टिक नहीं सकी । उसमें भावुकता की हलचल ही ज्यादा रही ,  जबकि कविता के मुक्त छंद की लय में संतुलन बना रहा। लय का मतलब जहां तक मेरी समझ में आता है कविता की अंतर्वस्तु के अनुरूप उसका विशिष्ट शब्द -विन्यास , यह कवि की कल्पना ---शक्ति  और वस्तु --अर्जन की प्रक्रिया से आता है , जिसे पुराने आचार्य सरस्वती  सिद्ध होना कहा करते थे। मेरी यह समझ है  कि पुरातनता या परम्परा जैसे सर्वथा वरेण्य नहीं होती वैसे ही सर्वथा त्याज्य भी नहीं। इतिहास भी तो अपनी तरह से मानवता के लिए प्रतिरोध और सामंजस्य के द्वन्द्वों में फलीभूत हुआ है।तभी हम आगे जाने के लिए कभी कभी पीछे की ओर भी देख लिया करते हैं। 

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