Friday, 18 April 2014

इतिहास के चहरे पर
चेचक के उभरते दागों  की
सही शिनाख्त करना
उसी तरह जरूरी है
जैसे रोग का निदान कर लेना।
चिंता की बात यह है
कि दीमक पेड़ की जड़ों तक
पंहुचने को है
और हम अपने घेरे के
ज्ञान----विद्यालय से
बाहर नहीं आ पा रहे हैं
पेड़ कभी घर की छत के नीचे नहीं पनपता
उसके लिए जंगल की ख़ाक छाननी पड़ती है
उन्होंने जो विष बीज बो दिए हैं
वे अब फलने को हैं

गलतियों का तूफ़ान
समुद्र की शान्ति की परवाह नहीं करता
हमको और गहरे में उतारना होगा
और जानना होगा कि
लहरें उठती कहाँ से हैं ?
कम  क्यों होते जा रहे हैं वे लोग
जो पूरब को पूरब ही जानते हैं
गलतियां कभी मुआफ नहीं करती
पर इंसानियत के लिए
हमेशा बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ती है
और वह भी निरंतर
इंसान बने रहकर।
 

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