हक्सले अपने आसपास के घटित पर पैनी निगाह रखने वाले विचारक हैं । उनका यह भविष्य कथन उन दो विश्व युद्धों की भवितव्यता भी है , जो विश्वस्तर पर साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा अपने बाज़ार की जगह बनाने के लिए किये गए थे। बाज़ार की ताकतें हमेशा एकाधिकार चाहती हैं।औद्योगिक पूंजी जहां श्रम के साथ मिलकर एक तरफ व्यक्ति को सामंती सम्बन्धों से मुक्त करने का काम करती है , वहीं दूसरी तरफ वह श्रम को दरकिनार कर अपने बाज़ार के फैलाव के लिए युद्ध करा देने और तानाशाही को थोप देने का काम भी "लोकतांत्रिक" तरीके से करा देती है।हमारी १६वीं लोकसभा के चुनाव की पीछे सटोरिया पूंजी और बाज़ार की ताकतों का एकजुट होना अनायास नहीं है , जिनका भीतरी सूत्र विश्व-साम्राज्यवादी ताकतों से मिला हुआ है। बहुत सामयिक और सटीक बात उद्धृत की गयी है।
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