Monday, 21 April 2014

नन्द बाबू के शतायु होने की कामना।  वे  निरंतर स्वस्थ---प्रसन्न रहते हुए अपनी अदा के साथ और उन्मुक्त-प्रफ्फुलित विनोद भाव की माधुर्यमयी जिजीविषा के अनहद नाद की तरह कविता में और हमारे जीवन में गूंजते रहें।  उनके द्वारा हास्य-विनोद के रूप में कहा एक  दोहा याद आ रहा है।  यह उस समय का है , जब विश्वविद्यालय अपने मुख्यालय पर परीक्षकों को बुलवाकर  कापियां जँचवाया करता था। तब चाय पीते हुए चुहलबाज़ी और अपनी ऊब को मिटाने के उद्देश्य से हम  कुछ इस तरह सोचते थे।  कई दोहे उस समय गढ़े गए, उनमें से एक इस प्रकार से है। उनके बैसाखमासी  जन्म- दिन पर उनको समर्पित ----
-कछु बाँची ,जांची नहीं , अंक सबन पै दीन।
तुम्हरी समता को करै ,जीवन सिंह प्रवीण। 

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