Monday, 21 April 2014

शब्द के पीछे जितनी सत्य कहने की ताक़त होगी ,वह उतना ही लयात्मक और मर्मस्पर्शी होगा। झूठ  में रहने से शब्द की लय गड़बड़ा जाती है ,फिर गद्य भी अच्छा नहीं लिखा जा सकता।  प्रेम चंद  अपने जमाने में सच के सबसे ज्यादा नज़दीक थे तो उन जैसा गद्य भी उनके समकालीन लेखकों का नहीं है। प्रेमचंद पाठक के मन में भीतर तक उत्तर जाने वाला गद्य लिखने में इसी वजह से समर्थ हुए क्योंकि उन्होंने जिंदगी के सच को बहुत नज़दीकी से समझ लिया था। कविता में निराला जी ने यही काम किया।कहने का तात्पर्य यह है कि जिंदगी के सत्य की लय जितनी खंडित और टूटी हुई होगी ,शब्द की लय भी उसी सीमा तक उखड़ी हुई होगी। वह जितनी समग्रता में होगी ,शब्द अपनी लय को उतना ही साध लेगा। 

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