जो यह सोचते हैं कि तरक्की के लिए तानाशाही जरूरी है ,वे नहीं जानते कि तानाशाह सत्ता के मद से बौराकर केवल सत्ता पिपासु वर्ग के हित में काम करता है। वह कभी पूरे देश और समाज हित में काम नहीं नहीं करता। वह सिर्फ अपनी सनक से काम करता है और उसी का प्रचार ,समाज--देश की उन्नति के रूप में कराता है। उन्नति एक वर्ग विशेष की होती है। जैसे हमारे देश की पूंजी पर धीरे--धीरे बड़ी चालाकी से एक बड़े पूंजीपति वर्ग का कब्जा होता जा रहा है। जबकि असलियत यह है कि गरीब आज पहले से ज्यादा गरीब हुआ है । हमारी नज़र अमीर और उसकी अमीरी से जब तक नहीं हटेगी ,हम असलियत को न देख पाएंगे, न जान पाएंगे। मीडिआ प्रचार से अपना दृष्टिकोण बनाने का सबसे भारी नुकसान यही होता है कि वह हमको तानाशाह में अच्छाइयाँ दिखाने लगता है और विवेकशून्य हो जाने की हद तक ले जाता है , तानाशाही ऐसे ही आया करती है। उसके लिए वही वर्ग जिम्मेदार होता है जो तानाशाही के अंदरूनी चरित्र को नहीं समझता। जन -नेतृत्त्व के निर्णयों की दृढ़ता और तानाशाही में बहुत फर्क होता है।बड़े वर्ग की सामूहिक आकांक्षा के आधार पर लोकहित में लिए गए सामूहिक निर्णयों पर डटे रहना और उनको वर्ग--विशेष के विरोध के चलते व्यवहार में लाने का प्रयास करना तानाशाही नहीं होती।
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