केशव जी की कविताओं पर महेश जी ने बहुत सटीक और सूत्र पद्धति में सही लिखा
है |कविता वास्तव में क्या होती है और हो सकती है यह इस आलोचना और कविता
दोनों से समझा जा सकता है | कविता यदि आज शब्दों और दिलों में बची हुई है
तो उसका एक रूप यह भी है और यह उसका मर्मस्पर्शी एवं सजीव रूप है | बूढ़े के
सन्दर्भ से गांधी की व्यंजना से कविता इस समय से सीधे जुड़ जाती है | आज
की बाजारू सभ्यता ने हमारे जीवनादर्शों को बुढ़ाई के खाते में जबरन धकेल
दिया है | प्रेम के मर्म में पैठ बनाने में केशव जी को काफी हद तक सफलता
मिली है |कहा जा सकता है कि केशव जी के रूप में भविष्य और वर्तमान की
कवि-संभावनाएं छिपी हुई हैं |
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