ये आज के लोक-स्वर के महत्त्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय युवा रचनाकारों में आते
हैं | इन्होने अपने जीवनानुभवों के आधार पर कविता की अपनी एक नई जमीन तोडी
एवं बनाई है|इस जीवन की विशेषता है कि श्रम से जुडा होने से इसकी
प्रकृति में ही काव्यत्व अन्तर्निहित है ----" राम तुम्हारा चरित स्वयम ही
काव्य है " की तरह |निर्मला जी ने मूलत संताली में लिखा और उनका हिन्दी
में अनुवाद अशोक सिंह ने किया | जहां तक मुझे याद है कि निर्मला पुतुल की
कवितायेँ २१वी सदी के लगते ही आने लग गयी थीं |" नगाड़े की तरह बजते हैं
शब्द "और " अपने घर की तलाश में "-- शीर्षकों से आए दो काव्य- संग्रहों में
पुतुल की कविताओं में अंतर्वस्तु की जो तेजस्विता एवं मौलिकता नज़र आती है
वह आज की कविता को एक नया आयाम देती है |यहाँ एक आदिवासी स्त्री का स्वर
तो है ही साथ ही आदिवासी जीवन - मूल्यों और संघर्षों का एक सजीव काव्यात्मक
इतिहास भी है | इन कविताओं से गुजरते हुए लगता है कि हम अपनी बेचैनी के
ताप के साथ एक गहरी नदी में अवगाहन कर रहे हैं | शिल्प भी इनका अपना है ,
आदिवासी अंतर्वस्तु की तरह आदिवासी शिल्प --- अपनी सहजता में मुखरित |यह
कविता हमको अपने अंधरे के खिलाफ उठने की सीख देती है | अन्धेरा बाहरइसलिए
अपनी बेटी मुर्मू से ही नहीं है वरन वह हमारे भीतर भी है |इसलिए कवयित्री
अपनी बेटी मुर्मू को संबोधित करते हुए कहती है कि ---
उठो, कि तुम जहां हो वहाँ से उठो
जैसे तूफ़ान से बवंडर उठता है
उठती है जैसे राख में दबी चिंगारी
जब निर्मला पुतुल का पहला काव्य- संग्रह प्रकाशित हुआ था , उसी समय मैंने उसकी समीक्षा की थी |इस कविता से विशवास हुआ कि हिन्दी कविता का भविष्य इन हाथों में सुरक्षित है |अनुज लुगुन की दिशा भी यही है | अभी उनकी ज्यादा कवितायेँ नहीं पढ़ पाया हूँ |
उठो, कि तुम जहां हो वहाँ से उठो
जैसे तूफ़ान से बवंडर उठता है
उठती है जैसे राख में दबी चिंगारी
जब निर्मला पुतुल का पहला काव्य- संग्रह प्रकाशित हुआ था , उसी समय मैंने उसकी समीक्षा की थी |इस कविता से विशवास हुआ कि हिन्दी कविता का भविष्य इन हाथों में सुरक्षित है |अनुज लुगुन की दिशा भी यही है | अभी उनकी ज्यादा कवितायेँ नहीं पढ़ पाया हूँ |
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