फ़िलहाल कोई मुख्य स्वर जैसी बात नज़र नहीं आती | जो कुछ है वह मिलाजुला है |
वर्चस्व स्त्री एवं दलित स्वरों का कहा जा सकता है | हाँ , लोक- स्वर भी
आजकल सिर चढ़कर बोल ता दिखाई दे रहा है | जन- जीवन से जुड़ा हुआ स्वर आज
यदि किसी धारा में देखा जा सकता है तो वह इसी लोक-स्वर वाली कविता में
सबसे ज्यादा है |यों तो , मध्यवर्गीय कविता की वैचारिकता में भी इस स्वर
को सुना जा सकता है | मध्यवर्ग में बढ़ते हुए उपभोक्तावाद ने उसे जन- जीवन
से काटने का काम किया है |
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