Friday 27 April 2012

जब साहित्य-मात्र ही हाशिये पर धकेला  जा रहा हो तब इसके कारण हमको उपभोक्तावादी तंत्र  में खोजने चाहिए | अब अपने देशी साहित्य में ही जब व्यक्ति क्षीण-रूचि हो रहा है तो इस सब का असर अन्य स्थितियों पर भी होगा | इसके बावजूद चयनित और चर्चित विश्व साहित्य के संपर्क में अल्पसंख्यक युवा आज भी रहता है |

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