जब साहित्य-मात्र ही हाशिये पर धकेला जा रहा हो तब इसके कारण हमको
उपभोक्तावादी तंत्र में खोजने चाहिए | अब अपने देशी साहित्य में ही जब
व्यक्ति क्षीण-रूचि हो रहा है तो इस सब का असर अन्य स्थितियों पर भी होगा |
इसके बावजूद चयनित और चर्चित विश्व साहित्य के संपर्क में अल्पसंख्यक युवा
आज भी रहता है |
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