Thursday 12 April 2012

पाँव हैं,
पदचाप हैं ,
पर चल नहीं पाता,

सोच है,
दिमाग भी है
पर, सोच नहीं पाता

हाथ हैं ,
भुजाएं हैं ,
पर कितना कर्महीन हूँ ,

खाता हूँ खूब-खूब
एक-दो बार नहीं ,
पांच-पांच बार
जुगाली करता हूँ सिर्फ
रस नहीं बनता कि
सरस हो जीवन - सरिता ,

ह्रदय होने का
करता हूँ दिखावा
ह्रदय हो नहीं पाता |

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