Wednesday 25 April 2012

५वे प्रश्न का जबाव -------
      हाँ,मैं जनपदीय आधार के बिना ,फ़िलहाल की स्थितियों में ,रचना को असंभव तो नहीं मानता किन्तु बुनियादी जीवनानुभवों तक के संश्लिष्ट और व्यापक यथार्थ की रचना करने के लिए जनपदीयता को उसका बुनियादी आधार मानता हूँ| दुनिया की बात तो मैं नहीं जानता किन्तु अपने देश की काव्य-परम्परा में कविता की महान रेखा जनपदीय आधारों  पर ही खींची जा सकी है | भक्ति -काव्य की महान  काव्य-परम्परा का मुख्य स्रोत जनपदों से ही प्रवाहित हुआ है | जो  महा- जाति [नेशन ] अपने जनपदीय आधारों पर टिकी हो  वहां तो यह बहुत जरूरी हो जाता है |हिन्दी एक महाजाति है , जिसके अनेक जनपदीय जीवनाधार आज भी प्रभावी स्थिति में हैं |आज भी हमारे यहाँ किसान -जीवन से उपजी वास्तविकताओं का गहरा असर हमारे मन पर रहता है |हमारे जीवन-संचालन में  उसकी प्रत्यक्ष और परोक्ष भूमिका आज भी कम नहीं है |ब्रज, अवधी ,बुन्देली ,छत्तीसगढ़ी , मैथिली , भोजपुरी, पहाडी  , राजस्थानी  आदि जनपदीय संस्कृति के बिना महान हिन्दी-संस्कृति का भवन बनाना शायद ही संभव हो पाए | रही वैश्विक और राष्टीय होने की बात ,ऐसा यदि जनपदीय आधार पर होगा तो वह  इन्द्रियबोध , भाव और विचारधारा के उन महत्त्वपूर्ण स्तंभों पर टिका होगा , जो हर युग की कविता को महाप्राण बनाते हैं | जहाँ तक इस कसौटी पर आज के  युवा कवियों द्वारा लिखी जा रही कविया का सवाल है तो इतना ही कहा जा सकता है की ज्यादातर कवि जनपदों के प्रति रागात्मक स्थितियों में हैं , उनका विचारधारात्मक आधार बहुत सुदृढ़ नहीं हो पाया है , लेकिन संभावनाएं यहीं हैं |इसमें कुछ युवा अभी अधकचरी स्थिति में भी हो सकते हैं | आकर्षण  और प्रलोभन यहाँ बिलकुल नहीं हैं क्योंकि यह "खाला का घर" नहीं है |
    

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