Tuesday 24 April 2012

२--लोकधर्मी कविता को यद्यपि एक आंचलिक काव्यधारा के रूप में देखा गया तथापि जीवन के बुनियादी सरोकार हमें इसी काव्यधारा में नज़र आते हैं |यह मध्यवर्गीय भावबोध से सम्बद्ध कवियों की काव्यधारा के सामानांतर एक अतिमहत्त्वपूर्ण और बुनियादी काव्यधारा है | आधुनिक युग में जिसके प्रवर्तन का श्रेय निराला को जाता है | आपने जिन कवियों का नाम लिया है वे इस धारा का विकास करने वाले प्रतिनिधि कवियों में आते हैं | मुक्तिबोध यद्यपि इस धारा से कुछ अलग से दिखाई देते हैं और उनकी मनोरचना मध्यवर्गीय कविता के ज्यादा समीप नज़र आती है किन्तु जब मुक्तिबोध नयी कविता की दो धाराओं का उल्लेख करते हैं तो वे भी बुनियादी तजुर्बों को कविता में लाने और रचने की दृष्टि से इसी काव्य- परंपरा में आते हैं | वे कविता में कवि-व्यक्तित्व के हामी होने के बावजूद व्यक्तिवाद के विरुद्ध काव्य-सृजन करते हैं |यह भी जनधर्मी काव्य-परंपरा का एक रूप है | कविता में जिनका बल जनवादी जीवन-मूल्यों का सृजन करने पर रहता है और जहाँ  जन-चरित्र तथा जन-परिवेश अपनी समग्रता में आता है , वह सब लोक-धर्मी  काव्य-धारा का ही अंग माना जाना चाहिए |कुमार विकल , शील आदि कवियों की कविता भी इसी कोटि में आती है | लोकधर्मी काव्य-धारा की यह विशेषता रही है कि वह  उस शक्ति का निरंतर अहसास कराती है जो मानवीय मूल्यों की दृष्टि से हर युग की सृजनात्मकता का अभिप्रेत रही है |
                            युवा पीढी में अनेक कवि हैं जो इस काव्य-धारा का विकास कर रहे हैं |एक ज़माने में अरुण कमल , राजेश जोशी , उदय प्रकाश ,मदन कश्यप अपनी  जन- संस्कृति -परकता की वजह से इस धारा का विकास करने वाले कवियों में चर्चित हुए | इनके बाद की पीढी में एकांत, का नाम बहुत तेजी से उभरा और नए युवा कवियों में केशव तिवारी , सुरेश सेन निशांत, महेश पुनेठा ,अजेय , नीलेश रघुवंशी , कुमार वीरेन्द्र ,निर्मला पुतुल , रजत कृष्ण,विमलेश त्रिपाठी , भरत प्रसाद , अनुज लुगुन, आत्मा रंजन, आदि कवियों की कविताओं से मैं परिचित हूँ | इस सूची में इनके अलावा और नाम हो सकते हैं क्योंकि दूर जनपदों में ऐसी कविता खूब लिखी जा रही है | हमारे यहाँ राजस्थान में ही विनोद पदरज यद्यपि  छपने-छपाने में बहुत संकोच बरतते हैं लेकिन जितना और जो उन्होंने लिखा है वह इसी धारा को पुष्ट करने वाला है |

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