Thursday 26 April 2012

उत्तर ----दोनों स्थितियां ही अतिवादी हैं | परम्परा के प्रति निषेध और स्वीकार का रिश्ता ही द्वंद्वात्मक संतुलन पैदा करता है | महाकवि कालिदास बहुत पहले कह गए हैं कि न तो पुराना सब कुछ श्रेष्ठ है और न सम्पूर्ण अभिनव ही वन्दनीय है |पुराने में भी श्रम से रचित मानव - सौन्दर्य है और नए में भी |दोनों की सीमायें भी हैं |आधुनिकतावादी कवियों में परम्परा के प्रति  निषेधवादी रहता है , जो या तो परम्परा से अनभिग्य  होते  हैं या आधुनिकता के मिथ्या-दंभ में ऐसा करते हैं |  लोक-धर्मी काव्य-परम्परा के कवियों में परम्परा और नवीनता के प्रति संतुलन देखने को मिलता है |

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