उत्तर ----दोनों स्थितियां ही अतिवादी हैं | परम्परा के प्रति निषेध और
स्वीकार का रिश्ता ही द्वंद्वात्मक संतुलन पैदा करता है | महाकवि कालिदास
बहुत पहले कह गए हैं कि न तो पुराना सब कुछ श्रेष्ठ है और न सम्पूर्ण अभिनव
ही वन्दनीय है |पुराने में भी श्रम से रचित मानव - सौन्दर्य है और नए में
भी |दोनों की सीमायें भी हैं |आधुनिकतावादी कवियों में परम्परा के प्रति
निषेधवादी रहता है , जो या तो परम्परा से अनभिग्य होते हैं या आधुनिकता
के मिथ्या-दंभ में ऐसा करते हैं | लोक-धर्मी काव्य-परम्परा के कवियों में
परम्परा और नवीनता के प्रति संतुलन देखने को मिलता है |
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