Wednesday 25 April 2012

३--- निस्संदेह,हर युग में वर्गीय अनुभवों की सीमाओं में कविता की जाती रही है |कबीर ने जब अपने  वर्ग-अनुभवों के आधार पर कविता की तो तत्कालीन उच्च-वर्ग ने उसे उसी रूप में शायद ही समझा | उसके सामाजिक-सांस्कृतिक अभिप्रायों की वास्तविकता का उदघाटन आधुनिक युग में आकर हुआ , जब वर्गीय समझ सामने आई |  मीरा ने अपने जीवनानुभवों के आधार पर भक्ति-कविता को एक नया मोड़ दिया |आज का दलित कवि अपने अनुभवों से काव्य परिदृश्य में हस्तक्षेप कर रहा है |आज का युवा कवि भी अपने वर्गीय अनुभवों की कविता लिख पा रहा है , जिन कवियों के पास लोक-जीवन के अनुभव नहीं हैं , वे लोक-जीवन से सम्बद्ध कविता को आंचलिकता के खाते में डाल देते हैं | नई कविता में मुक्तिबोध और अज्ञेय की जो दो काव्य धाराएं अलग-अलग नज़र आती हैं उसका कारण वर्गीय दृष्टि है |मुक्तिबोध बेहद वर्ग-सचेत कवि हैं , निम्न मेहनतकश वर्ग की पक्षधरता के साथ वर्गांतरण की प्रक्रिया को वे  कविता की अंतर्वस्तु बनाते हैं | ऐसा आज तक कोई दूसरा कवि नहीं कर पाया है |इसलिए भी उनकी कविता में दुर्बोधता दिखाई देती है |आज के युवा कवियों में ये तीनों धाराएं  दिखाई पड़ती हैं | एक अज्ञेय प्रवर्तित मध्यवर्ग की व्यक्तिवादी धारा , दूसरी मध्यवर्गीय जीवनानुभवों तक सीमित जनवादी धारा और तीसरी निम्नवर्गीय लोक-धर्मी काव्य धारा | मेरा मन इनमें तीसरी धारा के साथ रमता है और मैं इसको सबसे महत्त्वपूर्ण  मानता हूँ |

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