आज युवा कवियों द्वारा लिखी जा रही हिंदी कविता का परिदृश्य हर समय की तरह
मिला-जुला है जैसे पूरे समाज का है | समाज की प्रवृतियाँ आज की युवा कविता
में भी दिखाई देती हैं |कविता का सारा व्यापार कवि के जीवनानुभवों से चलता
है |जीवनानुभव जितने व्यापक और बुनियादी होंगे ,कविता की कला भी उतनी ही
व्यापक और असरदार होगी | इस समय की कविता पर मध्यवर्गीय जीवनानुभवों का
वर्चस्व बना हुआ है |उसमें आज के विवेक और आधुनिक बोध की धार तो है किन्तु
वह अयस्क-परिमाण बहुत कम है जो जिन्दगी की खदानों से सीधे आता है |अरुण कमल
की कविता की एक पंक्ति लगभग सूक्ति की तरह उधृत की जाती है ----" सारा
लोहा उन लोगों का अपनी केवल धार " | आज स्थिति यह है कि धार ज्यादा है और
लोहा बहुत कम रह गया है | इसका कारण है मध्यवर्ग और निम्नवर्गीय मेहनतकश
के जीवन में दूरी का बढ़ते चले जाना | कुछ लोकधर्मी युवा कवि अवश्य हैं जो
इस दूरी को कम करने की कोशिशें लगातार कर रहे हैं इसलिए उनकी कविता में धार
और लोहे का आनुपातिक संतुलन ज्यादा नज़र आता है |
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