Tuesday 3 June 2014

यह अलग रास्ता है

कोई जगह ,
कोई समय ऐसा नहीं ,
जहां
यह सूर्य नहीं चमकता
बादल कितने ही काले ,
डरावने क्यों न हों
इसे ढक  नहीं पाते
किन्तु , यह अलग रास्ता है
सबसे अलग
अकेले पड़  जाने वाला
जहाँ खाने को घास की रोटियां हैं
छप्पन भोग नहीं
जो छप्पन भोग करने  और सोने के लोटों में
गंगाजल पीने वाले गीतों में शामिल हैं
वे न इस पर चलते हैं
न इस दिशा को
अपने गणित में शामिल करते हैं 


यह किसी मजहब, धर्म और देश से होकर
नहीं गुजरता
कोई जाति  भी यहां नहीं होती
धरती का हर कोना
इससे प्रकाशित होता है
देश इसे नहीं  बनाते
यह देशों को बनाता है
इतिहास इसके आँगन में खेलता है
भूगोल इसके पीछे पीछे चलता है
यह संस्कृति को
करवट की तरह बदल देता है

यह सूर्य की तरह कभी अस्त नहीं होता
चन्द्र की तरह कभी गर्म नहीं
यह आकाश की तरह निर्मल
धरती की तरह उदार
और सागर --सी गहराई लेकर 
इसे आत्मा के अपने राग की तरह
सबसे उदात्त और ऊंचे स्वर में ही गाया जा सकता है