Thursday 19 September 2013

अपने युवा कवि-मित्र और प्रिय भाई महेश पुनेठा  जी से निजी तौर  पर परिचित हूँ । गंगोलीहाट और पिथोरागढ़ दोनों स्थानों पर उनके साथ हवा-पानी और भोजन पाने का सुखद अवसर मिला है । पहली बार प्रिय मित्र और चर्चित कवि केशव तिवारी के साथ अल्मोड़ा से गंगोली हाट  तक । अरावली पर्वत श्रृंखला तो हमारे घर के बगल में ही है पर पहाड़  वास्तव में क्या होता है , यह पर्वतीय प्रदेशों के अनुभव से ही जाना जा सकता है । जब पहले एक रात हल्द्वानी में बितानी पड़ती है । पहलीबार हमको कविवर सुमित्रा नंदन पन्त , गांधी जी का अनासक्ति आश्रम तथा वहाँ से नज़र आते हिमशिखरों का अद्भुत नज़ारा --खींच कर ले गए थे । दूसरी बार प्रसिद्ध वामपंथी पत्रकार पंकज बिष्ट के साथ । तब मैं और महेश जी तिब्बत की चोटियों का नज़ारा दिखलाने वाली और कुमायूं अंचल की शिखरस्थ गिरि -श्रेणियां बेहद रोमांचित करने वाली थी । महेश जी के साथ निरंतर जारी रहने वाले संवाद ने इस भयप्रद यात्रा को बेहद रोमांचक बना दिया था । हम ---मुनस्यारी ----तक गए थे । वहीं मुझे  पता चला कि पहाड़ में निरामिष रहना कितना मुश्किल होता है । महेश जी ने मेरी निरामिष आहार की आदत के लिए कोशिश  करके मेरी क्षुधा को शांत किया । अद्भुत जगह है --मुनस्यारी । हम दोनों वहाँ शाम को सड़कों पर पैदल मन भर कर घुमते रहे । जैसे कभी विजेन्द्र जी के साथ मेरे अपने जिले भरतपुर के विश्व-प्रसिद्ध विहग -अभयारण्य   ---घने---में लगभग हर माह घूमने का आह्लादक क्रम चलता था । बहरहाल , महेश जी की कवितायेँ इसी जीवन के संघर्षों और सौन्दर्य-क्रियाओं का सहज दस्तावेज हैं । इनमें हिम-जीवन की ऊंचाइयों के साथ उन सरिताओं का प्रवाह भी है , जो अपने उदगम  की पावन चंचलता , क्षिप्रता और दुर्दमनीयता का आवेग बरकरार रखती हैं । महेश जी स्वभावगत सरलता का निर्वाह इनमें अलग से झांकता है । 

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