" कवि"पत्रिका का पुनर्प्रकाशन शुरू होने की बेहद खुशी है । " कवि" उस दौर की पत्रिका है जब प्रगतिशील-जनवादी ताकतों के समक्ष 'परिमल -समूह' खडा हो रहा था । आज़ादी मिलने के बाद कई रचनाकार उन पांतों में शामिल हो गए थे ,जिनके पथ सत्ता की ओर जाते हैं । 'कवि' सही अर्थों में जनपक्षधर छोटे आकार की पत्रिका रही है । लगता है एक दौर फिर शुरू हो रहा है , जिसमें "पहल" का भी फिर से प्रकाशन एक घटना है । पहले" कवि " दिल्ली में नहीं था ,अब वह देश की राजधानी और बहुत बदले हुए दौर में है । ऐसी सभी पत्रिकाओं का स्वागत और सहयोग करने की जरूरत है , जो प्रगतिशील-जनवादी जीवनमूल्यों के लिए संघर्ष करती हुई उस परम्परा का विकास कर रही हैं ।
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