Thursday 12 September 2013

वैसे तो सारी मानव- जाति का भाव-संसार एक जैसा है किन्तु पृथ्वी पर मनुष्य के   इतिहास -भूगोल ने संस्कृतियों को अनेक रूपों में रचा है । यह अनेकरूपता ही है जो हमको एक करके अनेक कर देती है और अनेक करके एक कर देती है । ऊधो , मन माने की बात । जब हम अपनी जमीन की बात करते हैं तो  अनेकरूपता को ही ध्यान में रखते हैं   । दुनिया  में प्रशासनिक विभाजन और बदलाव चलता रहता है किन्तु इससे संस्कृति नहीं बदला  करती । आज भी बांग्ला देश का राष्ट्र गीत रवीन्द्र नाथ ठाकुर का रचा हुआ ही है । सांस्कृतिक रूप से भारत की सीमाएं बहुत बड़ी हैं । यह भारतीय उपमहाद्वीप है । लेकिन इसके भीतर भी अनेक जातियां (नेशन के अर्थ में ) निवास करती हैं , जिनसे मिलकर भारतीयता बनती  है । चीनी सभ्यता की पहचान हमसे अलग है ।हमारी अलग अलग भाषाएँ और उनकी लम्बी परम्परा है । ये सब मिलकर एक सांस्कृतिक आधार निर्मित करती हैं जिसे हम अपने सन्दर्भ में भारतीयता कहते हैं । हिंदी कविता उसी भारतीयता का एक अंग है । हमारा अपनी भाषाओं से आवयविक रिश्ता है । इसलिए भारतीय कविता की पहचान करते रहना वैसे ही जरूरी है जैसे अपनी क्षमताओं को समय - समय पर जांचना ।  

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