Monday, 23 September 2013

संत कवियों की बात को लोक जीवन में  इसीलिये जगह मिली क्योंकि वे  कथनी और करनी का अंतर अपने  जीवन-व्यवहार के स्तर पर  नहीं रखते थे और न ही अवसरवाद को काम में लेते थे । जीवन में उनके सामने भी यद्यपि दरबारी प्रलोभन थे किन्तु उनके जीवन-दर्शन ने उनको उनसे दूर रखा ।रीति-कवि उनके लालच में फंसे तो महान रचना नहीं कर पाए ।  अब का लेखक लोभ-लालच, पुरस्कार , पद के जाल में जाने-अनजाने फंस  जाता है । अब दरबारदारी दूसरे  तरह की है । निराला, त्रिलोचन,नागार्जुन ,प्रेमचंद ,मुक्तिबोध, रामविलास शर्मा जी ने अपने उच्चस्तरीय नैतिकबोध के उदाहरण प्रस्तुत किये । वे आज भी अनुकरणीय हैं । उनके लेखन की  ऊंचाई उनके नैतिक बोध से निर्मित होती है ।

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