संत कवियों की बात को लोक जीवन में इसीलिये जगह मिली क्योंकि वे कथनी और करनी का अंतर अपने जीवन-व्यवहार के स्तर पर नहीं रखते थे और न ही अवसरवाद को काम में लेते थे । जीवन में उनके सामने भी यद्यपि दरबारी प्रलोभन थे किन्तु उनके जीवन-दर्शन ने उनको उनसे दूर रखा ।रीति-कवि उनके लालच में फंसे तो महान रचना नहीं कर पाए । अब का लेखक लोभ-लालच, पुरस्कार , पद के जाल में जाने-अनजाने फंस जाता है । अब दरबारदारी दूसरे तरह की है । निराला, त्रिलोचन,नागार्जुन ,प्रेमचंद ,मुक्तिबोध, रामविलास शर्मा जी ने अपने उच्चस्तरीय नैतिकबोध के उदाहरण प्रस्तुत किये । वे आज भी अनुकरणीय हैं । उनके लेखन की ऊंचाई उनके नैतिक बोध से निर्मित होती है ।
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