यह विभ्रम बहुतों को रहता है कि यदि वे स्थानीयता से जुड़े रहेंगे तो राष्ट्रीयता और वैश्विकता से अलग समझ लिए जायेंगे । वे नहीं जानते कि व्यक्ति एक समय में एक ही जगह पर रहता हैं , । भौतिक तौर पर कभी व्यक्ति पूरे विश्व में नहीं रहता , वह उसके इतिहास , भूगोल और दर्शन से विश्व को समझने का प्रयास करता है । इन्द्रिय बोध की भी एक सीमा होती है । ऐसे ही भावों -विचारों की भी । लेकिन इन सबको वह निरंतर व्यापक,विस्तृत और गहरा बना सकता है और विश्व - स्तर तक पहुच सकता है । यह तो स्पष्ट है कि , इन्द्रिय-बोध और भाव के स्तर पर पूरी मानव-जाति में समानता है , उसकी अभिव्यक्ति के रूप -भिन्न हो सकते हैं । ऐसा नहीं होता तो कालिदास , गेटे को समझ में नहीं आता और गेटे को शायद ही कोई दूसरी जाति -भाषा का व्यक्ति समझ पाता । वारान्निकोव , तुलसी का रूसी में अनुवाद क्यों और कैसे करते ? सवाल जीवन-दृष्टि का है कि आप उसे देखते कहाँ से और किस कोण से हैं ? कवि जिस जमीन पर होता है , वही उसकी असली जमीन है और वहां कहने को बहुत कुछ मौजूद है । जहां प्रकृति और जीवन-संघर्ष करता हुआ मनुष्य है , वहाँ सब कुछ तो मौजूद है । वहाँ किस बात की कमी है । जरूरत है उसे देखने और उद्घाटित करते हुए व्यापक बनाने की । महान रचनाकारों ने कभी अपनी जमीन छोडकर नहीं लिखा है ।
No comments:
Post a Comment