Tuesday 24 September 2013

यह मनुष्य ही है जिसके पास भाव और चिंतन दोनों की उच्चतम और संश्लिष्ट प्रणाली मौजूद है ।आजकल  एक उत्तर-आधुनिक चिंतन प्रणाली भी चल रही है जहां ध्यान रखने की बात यह है कि वह हमको मानवता के सही रास्ते से इधर-उधर भटकाती तो नहीं है ? आज भटकाव और ठहराव दोनों की ज्यादा चल रही है । जब तक हमारा चिंतन आज के मेहनतकश की तरफदारी में नहीं होगा ,तब तक भटकाव और ठहराव दोनों खतरे बने रहेंगे । तत्त्व-मीमांसा वह, जो हमको आज की मानवता अर्थात मेहनतकश से जोड़े । रहा अध्यात्म का सवाल आचार्य शुक्ल ने बहुत पहले ही इस धारणा का विरोध करते हुए लिखा है कि --"-आजकल अध्यात्म के चश्मे बहुत सस्ते हो गए हैं ।" वैसे अध्यात्म का शाब्दिक अर्थ है ----अपने से ऊपर उठना । अपने से ऊपर आप तभी उठ सकते हैं जबकि अपनी परवाह छोड़कर दूसरों की परवाह करें । दूसरे  कौन, जो सबसे ज्यादा मेहनत  करने के बावजूद , जिनको उसका प्रतिफल नहीं मिलता । उसे बीच का बिचौलिया हड़प जाता है ।

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