साम्प्रदायिकता , और वह भी वोट के दिनों में उग्रवाद का रूप धारण कर लेती है । उस समय उसके विरुद्ध यदि कोई अपना खुला और दो टूक मंतव्य व्यक्त करता है तो उसका बहुत बड़ा मतलब होता है । उससे वे ताकतें विचलित हो जाती हैं , जैसा इस मामले में हुआ है ।अनंतमूर्ति के वक्तव्य की मार भीतर तक हुई है । रही पलायन की बात , ऐसे समय में ऐसा कहना भी अर्थ रखता है । यह मेरी समझ है । "अतिथि देवो भव " तो सारी दुनिया में होता है । दूसरी जगह भी अतिथि को कोई नहीं पीटता । आखिर में मकबूल फ़िदा हुसैन को भी किसी ने तो अपने यहाँ रखा । हम किसी की रक्षा नहीं कर पाते ,तभी तो व्यक्ति अकेला पड़ जाता है ।
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