ऐसा पहले कभी नहीं हुआ
कि ईख के खेत
इस तरह धधके हों
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ
कि गन्नों का रस
इतना जहरीला हुआ हो
जब ईख बोई जाती है
तो वह हाथ को देखती है ,
उन हाथों में लकीरें होती हैं
जिनके भीतर बहता है
खून इंसानियत का
वे हिन्दू-मुसलमान नहीं होती
उनको मेहनत के रस ने
सींचा होता है
यह क्या हुआ ?
कि हमारे ईख के खेत
मेंड़ों में बट गए
यह खेल कोई और है
अब सब समझ रहे हैं
इस बार जो फसल होगी
वह , वह नहीं होगी
जो तुम समझ कर चल रहे हो ।
कि ईख के खेत
इस तरह धधके हों
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ
कि गन्नों का रस
इतना जहरीला हुआ हो
जब ईख बोई जाती है
तो वह हाथ को देखती है ,
उन हाथों में लकीरें होती हैं
जिनके भीतर बहता है
खून इंसानियत का
वे हिन्दू-मुसलमान नहीं होती
उनको मेहनत के रस ने
सींचा होता है
यह क्या हुआ ?
कि हमारे ईख के खेत
मेंड़ों में बट गए
यह खेल कोई और है
अब सब समझ रहे हैं
इस बार जो फसल होगी
वह , वह नहीं होगी
जो तुम समझ कर चल रहे हो ।
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