Thursday, 12 September 2013

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ
कि ईख के खेत
इस तरह धधके हों
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ
कि गन्नों का रस
इतना जहरीला हुआ हो
 जब ईख बोई जाती है
तो वह हाथ  को देखती है ,
उन हाथों में लकीरें होती हैं
जिनके भीतर बहता है
खून इंसानियत का
वे हिन्दू-मुसलमान नहीं होती
उनको मेहनत के रस ने
सींचा होता है

यह क्या हुआ ?
कि हमारे ईख के खेत
मेंड़ों में बट  गए
यह खेल कोई और है
अब सब समझ रहे हैं
इस बार जो फसल होगी
वह , वह नहीं होगी
जो तुम समझ कर चल रहे हो ।
 

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