Tuesday, 10 September 2013

मेहनतकश मजदूर-किसान कभी आपस में नहीं लड़ते ,उनको लड़वाते हैं बीच के लोग , जो ज़िंदा शरीरों में आग लगाकर उस पर अपनी राजनीति की रोटी सकते हैं । इन शैतानों का एक ख़ास  वेश  , भाषा और अफवाह फैलाने का ढंग  तो होता ही है , कभी-कभी ये वेश बदलकर  भी  अपना स्वार्थ साधते हैं । ये चुनाव के दिन हैं अब जो कुछ न हो जाय ,थोड़ा है । दंगों में अभी तक उच्च  और उच्च -मध्य वर्ग से कोई हताहत हुआ क्या?  हमेशा गरीब ही क्यों मरता है ? वही तो है जिसे हर समय जीवन के मैदान के बीच रहना पड़ता है । देश की संवेदनशील जनता को बहुत बड़े पैमाने पर जन-जागरण की जरूरत है । 

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