Friday, 12 July 2013

अनेक भाषाएँ सीखना -जानना व्यक्तित्व को समृद्ध करना है किन्तु यह सब  यदि मातृभाषा  और जन-भाषा की कीमत पर किया जाता है तो गंभीर चिंता का विषय है । मौलिक सोच,आज़ाद -ख़याल और सृजनात्मक समृद्धि के लिए जरूरी है मातृभाषाओं में शिक्षण । अंगरेजी शासन काल में उन्होंने हमको अपनी भाषा से भी गुलाम बनाया था । यह अलग बात है कि उसी ज्ञान के मार्फ़त उस समय के अनेक लोग स्वाधीनता और समानता जैसे जीवन- मूल्यों के लिए लड़े । तभी तो कहा गया------निज भाषा उन्नति अहै , सब उन्नति कौ मूल ।




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