अनेक भाषाएँ सीखना -जानना व्यक्तित्व को समृद्ध करना है किन्तु यह सब
यदि मातृभाषा और जन-भाषा की कीमत पर किया जाता है तो गंभीर चिंता का विषय
है । मौलिक सोच,आज़ाद -ख़याल और सृजनात्मक समृद्धि के लिए जरूरी है
मातृभाषाओं में शिक्षण । अंगरेजी शासन काल में उन्होंने हमको अपनी भाषा से
भी गुलाम बनाया था । यह अलग बात है कि उसी ज्ञान के मार्फ़त उस समय के अनेक
लोग स्वाधीनता और समानता जैसे जीवन- मूल्यों के लिए लड़े । तभी तो कहा
गया------निज भाषा उन्नति अहै , सब उन्नति कौ मूल ।
।
।
No comments:
Post a Comment