मेरी यह मान्यता पहले है कि हिंदी की सृजनात्मक काव्य-परम्परा में लोक
को आदिकाल से पहले स्थान पर रखा गया है । पूरा भक्ति-काव्य इसी वजह से
महत्त्वपूर्ण और आज तक प्रासंगिक है ।अज्ञेय से प्रभावित आधुनिकतावादी कवियों में उससे विच्युति है और
इनसे ज्यादा सार्थक कविता नागार्जुन, केदार, त्रिलोचन ने की है । उनको
इसी विशेषता के कारण उस समय हाशिये पर धकेल दिया गया था । समझौता ऐसी आंतरिक तकनीक है , जो सत्ताकेंद्रों के नज़दीक , भीतरी सूत्र की तरह जोड़े रखती है, बाहर नजर नहीं आती
। यह मध्यवर्गीय बीमारी है , जो अब पहले से ज्यादा बढ़ गयी है ।
किसी बात को समझते हुए भी अनदेखी करना और चुप्पी खींचना कहीं न कहीं इसी
कोटि में आता है । एक समय आधुनिकतावाद यह काम कर रहा था आज यही काम
उत्तर-आधुनिकतावाद कर रहा है । लोक हमसे दूर अपनी जगह पर कायम है । सच्चा कवि हमेशा उसी की तलाश में रहता है और उपेक्षा -उपेक्षा की तोता-रटंत से दूर अपना काम करता रहता है ।
No comments:
Post a Comment