Friday, 19 July 2013

 मेरी यह मान्यता पहले  है कि  हिंदी की सृजनात्मक  काव्य-परम्परा में लोक को आदिकाल से पहले स्थान पर रखा गया है । पूरा भक्ति-काव्य इसी वजह से महत्त्वपूर्ण और आज तक प्रासंगिक है ।अज्ञेय से प्रभावित आधुनिकतावादी  कवियों में उससे विच्युति है और इनसे ज्यादा सार्थक कविता नागार्जुन, केदार, त्रिलोचन ने की है । उनको इसी विशेषता के कारण उस समय हाशिये पर धकेल दिया गया था । समझौता ऐसी आंतरिक तकनीक है  , जो  सत्ताकेंद्रों के नज़दीक , भीतरी सूत्र की तरह जोड़े रखती  है, बाहर नजर नहीं आती  । यह मध्यवर्गीय बीमारी है , जो अब पहले से ज्यादा बढ़ गयी है । किसी बात को समझते हुए भी अनदेखी करना और चुप्पी खींचना कहीं न कहीं इसी कोटि में आता है । एक समय आधुनिकतावाद यह काम कर रहा था आज यही काम उत्तर-आधुनिकतावाद कर रहा है । लोक हमसे दूर अपनी जगह पर कायम है । सच्चा  कवि हमेशा उसी की तलाश में रहता  है और  उपेक्षा -उपेक्षा की तोता-रटंत से दूर अपना काम करता रहता है । 

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