पद्मजा जी आपके सवालों के जबाव ---------क्रम से -----
पहला सवाल -------खासतौर से जीवन-तत्त्व को । साहित्य में यदि अपना समय और जीवन की व्यापकता और गहराई नहीं है तो वह व्यक्ति के लिए निजी लाभ , पुरस्कार , सम्मान पाते रहने का जुगाड़ हो सकता है , सच्चा जन-साहित्य नहीं । लेखक की जीवन-दृष्टि का सवाल भी महत्त्वपूर्ण होता है और हमारे जैसे देश के साहित्य में परम्परा -बोध भी । समकालीनता अपनी परम्परा के क्रम-विकास में नहीं है तो वह सामयिकता हो सकती है , समकालीनता नहीं । समकालीनता के साथ रचनाकार की भविष्य- धारणा भी जुडी रहती है । इस रूप में उसका रिश्ता तीनों कालों से जुड़ जाता है । त्रिकालदर्शी होने पर ही कालजयी साहित्य रचा जाता है । दूसरे , साहित्य का अपना कला-शिल्प भी , जो उसे स्वायत्त बनाता है ।
दूसरा सवाल------अच्छा मनुष्य होना । निर्वैयक्तिक वैयक्तिकता से सम्पन्न होना और रचनाकार से ज्यादा अपने समय और जीवन को जानने की कोशिश करना । विश्व-दृष्टि सम्पन्न होना और अच्छे गद्य की पहचान होना ।
पहला सवाल -------खासतौर से जीवन-तत्त्व को । साहित्य में यदि अपना समय और जीवन की व्यापकता और गहराई नहीं है तो वह व्यक्ति के लिए निजी लाभ , पुरस्कार , सम्मान पाते रहने का जुगाड़ हो सकता है , सच्चा जन-साहित्य नहीं । लेखक की जीवन-दृष्टि का सवाल भी महत्त्वपूर्ण होता है और हमारे जैसे देश के साहित्य में परम्परा -बोध भी । समकालीनता अपनी परम्परा के क्रम-विकास में नहीं है तो वह सामयिकता हो सकती है , समकालीनता नहीं । समकालीनता के साथ रचनाकार की भविष्य- धारणा भी जुडी रहती है । इस रूप में उसका रिश्ता तीनों कालों से जुड़ जाता है । त्रिकालदर्शी होने पर ही कालजयी साहित्य रचा जाता है । दूसरे , साहित्य का अपना कला-शिल्प भी , जो उसे स्वायत्त बनाता है ।
दूसरा सवाल------अच्छा मनुष्य होना । निर्वैयक्तिक वैयक्तिकता से सम्पन्न होना और रचनाकार से ज्यादा अपने समय और जीवन को जानने की कोशिश करना । विश्व-दृष्टि सम्पन्न होना और अच्छे गद्य की पहचान होना ।
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