Sunday, 14 July 2013

राष्ट्रवाद

जो जीवन भर
विभाजित और सूखी नदी को
और शूलों छिदी लहूलुहान  धरती को
राष्ट्र की विचारधारा में लपेटे रहे  

वहाँ हमेशा
मरे चूहे की तरह
आत्मा का वीभत्स उल्लास
और कारोबारी अजगरों के दांत
जीवन-तत्व पर गड़े होते

उनके हाथ से रोपे  गए 
पेड़ों में हमेशा विषफल ही लगते
कभी वे आदमी की तरह
आदमी के चेहरे को नहीं देख पाए

उनके मुख से
प्रदूषित चिमनियों का धुंआ निकलता
जैसे ओले हरी फसल  का
कर देते हैं विनाश

उनके पास आग से भरी
अंगीठी है जो
बस्तियों को  क्षण भर में
ख़ाक कर सकती है
जैसे उनके पास डर  का कोड़ा है
जिसे वे पीठ के पीछे रखते हैं

उनके द्वारा बनाए जा रहे
नरक-कुण्ड के चारों ओर
इंद्र की अप्सराएं जाल बिछा रही हैं
पर वह
इतनी आसानी से
आत्माओं को फंसाने में
कामयाब नहीं होगा
समझ लेना ।





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