अलवर के राजा जय सिंह ने अपनी रियासत में १ ९ ० ६ में हिंदी को राज भाषा बना दिया था और उसके विकास के लिए काशी से
आचार्य राम चन्द्र शुक्ल और प्रेम चंद जी को तत्कालीन राजसी सुविधाओं पर आमंत्रित किया था । आचार्य शुक्ल आए और एक महीने से ज्यादा यहाँ के सामंती वातावरण में नहीं रुक सके । प्रेम चंद यह सब पहले से समझते थे अत आए ही नहीं । व्यवस्था के चरित्र की ऐसी परख आज भी अच्छे-अच्छे लेखक को नहीं है ।
आचार्य राम चन्द्र शुक्ल और प्रेम चंद जी को तत्कालीन राजसी सुविधाओं पर आमंत्रित किया था । आचार्य शुक्ल आए और एक महीने से ज्यादा यहाँ के सामंती वातावरण में नहीं रुक सके । प्रेम चंद यह सब पहले से समझते थे अत आए ही नहीं । व्यवस्था के चरित्र की ऐसी परख आज भी अच्छे-अच्छे लेखक को नहीं है ।
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