Wednesday 31 July 2013

प्रेम चंद के फटे जूते  -------
"मुझे लगता है तुम किसी सख्त चीज को ठोकर मारते रहे हो । कोई चीज जो परत-पर परत सदियों से जमती गयी है ,उसे शायद तुमने ठोकर मार मार कर अपना जूता फाड़ लिया । कोई टीला जो रास्ते पर खडा हो गया था ,उस पर तुमने अपना जूता आजमाया । तुम उसे बचाकर उसके बगल से भी निकल सकते थे । टीलों से समझौता भी तो हो जाता है । सभी नदियाँ पहाड़ थोड़े ही फोडती हैं ,कोई रास्ता बदलकर घूम कर भी तो निकल जाती हैं ।
तुम समझौता कर नहीं सके । क्या तुम्हारी भी वही कमजोरी थी,जो होरी को ले डूबी , वही 'नेम-धरम ' वाली कमजोरी ? ",नेम-धरम " उसकी भी कमजोरी थी । मगर तुम जिस तरह मुस्करा रहे हो , उससे लगता है कि शायद 'नेम-धरम 'तुम्हारा बंधन नहीं था , तुम्हारी मुक्ति थी । --------------हरि शंकर परसाई

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