लोक से मेरा मतलब उस जन-समूह से है जो गाँव-शहरमें सर्वत्र है । जो श्रम
करके अपनी जीवन नौका को खेता है । कोई तिकड़म ,जुगाड़ और ऐसी रणनीति नहीं
भिडाता जो आदमी को इंसानियत से च्युत कर दे । इस काम में जो और जितना
मध्य-वर्ग शामिल है वह भी उसी जन-समूह(लोक) का हिस्सा है बशर्ते कि वह तय
कर ले कि वह किस ओर है ? दो नौकाओं में सवारी करने वाले मध्य वर्ग का
चरित्र उसे कहाँ बिठाता है यह आप स्वयं जानते हैं ।
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