लोक ,समूह का प्रतिनिधित्त्व करता है जबकि जन , व्यक्ति का । दोनों एक दूसरे
के पूरक हैं और जब दोनों में द्वंद्वात्मक रिश्ता बन जाता है तो समाज में
गति एवं परिवर्तन की प्रक्रिया तेज होने लगती है । उत्तर-आधुनिकतावाद यह
नहीं मानता उसका विश्वास विखंडन में है । आधुनिकतावादी और
उत्तर-आधुनिकतावादी दोनों ही व्यक्ति पर बल देते हैं ,जन-समूह यानी लोक पर
नहीं । मार्क्सवाद दोनों के द्वंद्वात्मक रिश्ते को मानकर चलता है । वह
एकांगी दर्शन नहीं है ।
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