आज की सुबह अलग तरह की रही , जिसे रचनात्मक सुबह कह सकता हूँ । हमारे
आदरणीय भाई और वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर श्री प्राण नाथ भारद्वाज की
संस्मरणात्मक आत्मकथा या आत्मकथात्मक संस्मरणों की एक कृति ----"बात
तुम्हारी चली " -----शीर्षक से प्रकाशित पुस्तक को जयपुर से आदरणीय भाई
मोहन श्रोत्रिय अलवर लेकर आये । इस कृति को किस विधा में रखा जाय ,यह वैसा
ही है जैसे प्रसिद्ध दागिस्तानी साहित्यकार रसूल हमजातोव के ---मेरा
दागिस्तान--- की विधा के बारे में । जहां सब कुछ इतना घुलामिला है कि एक
साथ कितनी ही विधाओं का आस्वादन इसकी पठन -यात्रा में हुए बिना नहीं रहता ।
ख़ास बात यह कि इसके भीतर से लगातार एक बेहतरीन और शानदार इंसान हमारे साथ
रहता है और वह भी पूरे संकोच तथा निस्पृहता के साथ । यह गुण अच्छे -अच्छे
ख्यात रचनाकारों में दुर्लभ है । इसके गद्य में जो गंगानगरी पंजाबीपन है
वह इसकी सुगंध को और बढ़ा देता है । बहरहाल ,एक अच्छे मनुष्य की आपबीती से
यहाँ जगबीती का जो अनुभव होता है वह आज के आपाधापी के जमाने में लगभग
दुर्लभ है ।
एक तरह का घरेलू लोकार्पण चार मित्रों औरआदरणीया भाभी जी की उपस्थिति में हुआ । लेखक को उसकी पहली प्रति उनके चार साथीमित्रों और अनुजों ने उनको भेंट की ।
एक तरह का घरेलू लोकार्पण चार मित्रों औरआदरणीया भाभी जी की उपस्थिति में हुआ । लेखक को उसकी पहली प्रति उनके चार साथीमित्रों और अनुजों ने उनको भेंट की ।
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