Sunday, 21 July 2013

आज की सुबह अलग तरह की रही , जिसे रचनात्मक सुबह कह  सकता हूँ । हमारे आदरणीय भाई और वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर श्री प्राण नाथ भारद्वाज की संस्मरणात्मक आत्मकथा या आत्मकथात्मक संस्मरणों की एक कृति ----"बात तुम्हारी चली " -----शीर्षक से  प्रकाशित पुस्तक को जयपुर से आदरणीय  भाई मोहन श्रोत्रिय अलवर लेकर आये । इस कृति को किस विधा में रखा जाय ,यह वैसा ही है जैसे प्रसिद्ध  दागिस्तानी साहित्यकार रसूल हमजातोव के ---मेरा दागिस्तान--- की विधा के बारे में । जहां सब कुछ इतना घुलामिला है कि एक साथ कितनी ही विधाओं का आस्वादन इसकी पठन -यात्रा में हुए बिना नहीं रहता । ख़ास बात यह कि इसके भीतर से लगातार एक बेहतरीन और शानदार इंसान हमारे साथ रहता है और वह भी पूरे संकोच तथा निस्पृहता के साथ । यह गुण अच्छे -अच्छे ख्यात रचनाकारों में दुर्लभ है । इसके गद्य में जो गंगानगरी  पंजाबीपन है वह इसकी सुगंध को और बढ़ा देता है । बहरहाल ,एक अच्छे मनुष्य की आपबीती से यहाँ जगबीती का जो अनुभव होता है वह आज के आपाधापी के जमाने में लगभग दुर्लभ है ।
       एक तरह का घरेलू लोकार्पण चार मित्रों औरआदरणीया भाभी जी की उपस्थिति में हुआ । लेखक को उसकी पहली प्रति उनके चार साथीमित्रों और अनुजों ने उनको भेंट की ।

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