Friday, 19 July 2013

शब्द-यात्रा

मंजिल तक
पंहुचते हैं उतनी
करते है शब्द ,
जीवन-यात्रा जितनी

यात्राएं कभी पूरी नहीं होती
अधूरी यात्राओं से जन्म लेती हैं
अधूरी  कवितायेँ

वे शब्द
उसी खेत की मैंड पर मिलेंगे
जहां किसान हल जोत रहा है
पानी के बीच खडा
धान की पौध रोप रहा है

बंद कमरों में
शब्दों की कोठरी की गंध
सीलन भरी है
वहाँ से छान-झोंपड़े
नज़र नहीं आते

सकर्मक शब्द
सडक बुहारने वाली
उस सुन्दरी के पास मिलेंगे
जिसकी जिन्दगी में
आज भी झाडू के संग
उसके ढकोले में
कूडा -करकट एकत्र है

कविता के शब्द
कभी राज-प्रासादों और सत्ता -केन्द्रों में
ढूंढें नहीं मिलते
महाकवियों ने उनको
वनवासों ,जंगलों
पहाड़ों, सरिताओं और
कच्ची बस्तियों में खोजा
उन महायुद्धों में
जो चलते रहे
अमीर शैतानों और गरीब इंसानों के बीच

नदी पार उतारने वाली नौका में
पहले जैसी इतिहास-गति है
युद्ध अभी ख़त्म नहीं हुआ
इसीलिये कवि खोज रहा है
निरंतर
जीवन-तत्त्वों से भरे
नए-नए सकर्मक शब्द ।







































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