अज्ञेयवाद के पैर एक जमाने में नागार्जुन ,केदार , त्रिलोचन और मुक्तिबोध
के रचनाकार और प्रगतिशील जनवादी आन्दोलन ने तोड़ दिए थे । उत्तर-आधुनिक
माहौल का फायदा उठाकर कुछ लोग उसे फिर जीवित कर अपनी रोटी सेंकना चाहते थे ,
लेकिन पृथ्वी कभी वीर-विहीन नहीं होती, जिन साथियों ने मोर्चा सम्भाला , उनको सलाम ।
No comments:
Post a Comment