बदलाव एक सतत संघर्षशील प्रक्रिया होती है । हम अनेक अंतर्विरोधों के
साथ अपना जीवन निर्वाह करते हैं और कोशिश करते हैं कि वे कम से कम हों ।
लेकिन आदमी अपने स्वभाव को आसानी से नहीं बदल पाता । यही तो उसका मनुजत्त्व
के भीतर का पशुत्त्व है , जिससे वह संघर्ष नहीं करता । आज़ादी की लड़ाई जिस
उद्देश्य से भगत सिंह लड़ रहे थे , उस उदात्त ढंग और उद्देश्य के साथ सभी तो
नहीं लड़ रहे थे । उस समय भी आपसी मतभेद खूब हुआ करते थे । इसलिए यथार्थ और
प्रक्रिया दोनों को मिलाकर देखना चाहिए , निराशा कम होगी । हमारा जाति
-सम्प्रदायवाद खूब नीचे तक पहुच गया है ,यह सच है लेकिन उससे एक स्तर पर
हल्की ही सही , मुठभेड़ भी जारी है ।
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