जातिवाद का आधार है हमारे कृषि-सम्बन्ध और उंच-नीच वाली वर्ण-व्यवस्था है , जिसको कृषि-संबंधों ने निरंतर गहरा बनाया । जब तक कृषि-सम्बन्ध सही अर्थों में औद्योगिक संबंधों में रूपांतरित नहीं होंगे तब तक रिश्तों का जातिवादी आधार नहीं खिसकेगा । क्या कारण है कि हमारे यूनीवर्सिटी ---कालेजों तक में यह नहीं टूट पाता ? ट्रेड यूनियन तक राजनीतिक तौर पर जातिवाद की दलदल में फंस जाती हैं । हमारा सोच तो गैर---जाति परक हो जाता है किन्तु कृषि संबंधों के दबाव उसे फिर से ---पुनर्मूषको भव ---की स्थिति में पंहुचा देते हैं । इसे अंतरजातीय विवाह कुछ ढीला कर सकते हैं किन्तु पितृ-सत्ता उसे फिर अपनी जगह पर ले आती है ।
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