प्रकृति ने दो तरह के अखरोट---कठोर और कोमल ----- जरूरत और प्राकृतिक नियमों के तहत बनाए हैं । जीवन भी एक जैसा नहीं होता । उसमें मृदुता और कठोरता के विरुद्धों का सामंजस्य रहे तो न केवल संतुलन आता है बल्कि उसका सौन्दर्य भी दुगुना हो जाता है । जहां तक कविता की सम्प्रेषनीयता का सवाल है , उसका सम्बन्ध कवि के भाषा पर अधिकार से है । यदि उसकी शब्द-साधना यानी जीवन-साधना कमजोर है तो सम्प्रेषण का संकट पैदा हुए बिना नहीं रह सकता ।
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