सदानीरा--संपादक -आग्नेय ,भोपाल,/ सेतु- सम्पादक -देवेन्द्र गुप्ता , शिमला /एक और अंतरीप -जयपुर ----एक-एक दिन के अंतराल से प्राप्त हुई हैं । 'सदानीरा'में सुधीर रंजन सिंह ने ब्रेख्त की एक कविता की अच्छी टीका की है । छोटी सी कविता है । जितनी आसान , उतनी ही मुश्किल ----ऐसी द्वंद्वात्मकता लाना साधना का काम है ------
कसीदा कम्युनिज्म के लिए -----
यह तर्कसंगत है , हर कोई इसे समझता है । आसान है ।
तुम तो शोषक नहीं हो , तुम इसे समझ सकते हो ।
यह तुम्हारे लिए अच्छा है ,इसके बारे में जानो ।
बेवकूफ इसे बेवकूफी कहते हैं और गंदे लोग इसे गंदा कहते हैं ।
यह गन्दगी के खिलाफ है और बेवकूफी के खिलाफ ।
शोषक इसे अपराध कहते हैं ।
लेकिन हमें पता है ,
यह उनके अपराध का अंत है ।
यह पागलपन नहीं ,
पागलपन का अंत है ।
यह पहेली नहीं है
बल्कि उसका हल है ।
यह वो आसान सी चीज है
जिसे हासिल करना मुश्किल है ।
कसीदा कम्युनिज्म के लिए -----
यह तर्कसंगत है , हर कोई इसे समझता है । आसान है ।
तुम तो शोषक नहीं हो , तुम इसे समझ सकते हो ।
यह तुम्हारे लिए अच्छा है ,इसके बारे में जानो ।
बेवकूफ इसे बेवकूफी कहते हैं और गंदे लोग इसे गंदा कहते हैं ।
यह गन्दगी के खिलाफ है और बेवकूफी के खिलाफ ।
शोषक इसे अपराध कहते हैं ।
लेकिन हमें पता है ,
यह उनके अपराध का अंत है ।
यह पागलपन नहीं ,
पागलपन का अंत है ।
यह पहेली नहीं है
बल्कि उसका हल है ।
यह वो आसान सी चीज है
जिसे हासिल करना मुश्किल है ।
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