Sunday, 27 October 2013

शम्भू यादव का पहला काव्य-संग्रह ----नया एक आख्यान ---मुझे कुछ समय पहले मिला । धीरे-धीरे पढता रहा । हमारे अलवर का एक छोर हरियाणे से मिला ही नहीं है वरन उस पर उसकी छाप भी है । वह राठ क्षेत्र कहलाता है । एक जमाने में वहां के भोजपुर के भिखारी ठाकुर जैसे लोक-रचनाकार और गायक अलीबख्श ने बड़ी धूम मचाई थी । शम्भू की कविताओं में उनका राठीपन  बोलता है ।  यह शम्भू जी का ठेठ राठी कवि  ही कह सकता है कि ---हमारे आसपास चारों ओर एक ऐसी 'गाद'फ़ैली है जो बदबू तो देती ही है ---बीहड़ भी है । शायद ही गंदगी का ऐसा विशेषण परक बिम्ब कविता में किसी ने दिया हो । गंदगी सच  में बीहड़ ही होती है । उसमें पैर धंसते हैं और निकला नहीं जाता ।यह भौतिक ही नहीं होती , मानसिक उससे ज्यादा होती है । उनकी एक छोटी सी कविता जीवन-अभिप्राय को बहुत दूर तक ले जाती है और शब्द की महिमा को अर्थ के रूप में सचाई के बहुत समीप पंहुचा देती  है ।  आज के इस मूल्य-क्षरण के युग में इतना सटीक बिम्ब वही कवि ला सकता है , जो जिन्दगी के सबसे निचले पायदान से जुड़ा  हो ।जहां से शम्भू जी आते हैं , राठ -हरियाणे  का  वह  इलाका कुछ अलग तरह का है । हमारे यहाँ राठ अंचल के बारे में एक कहावत प्रचलित है ---'-काठ नबै , पर राठ ना नबै' । कुछ ऐसा ही काठीपन शम्भू यादव की कविताओं में है । वे लिखते हैं------"यह कैसी गाद फ़ैली है /बीहड़ और बदबूदार //जहां भी पैर रखो , धंसते हैं / " वे सरल कविताएँ लिखते है लेकिन यह भी सच है कि सरल रेखा खींचना सबसे मुश्किल होता है । उनकी कुछ  व्यंजनाएं  हमारे ह्रदय को विकल कर देने की क्षमता रखती है ------"घर में लडकी जवान है /एक अधूरा लघु-वृत्त /डिब्बे में बंद है / " 

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