कविता का सम्बंध जीवन के सभी क्षेत्रों से होता है , वह सर्वव्यापी है --अंतरात्मा से लगाकर विश्वात्मा तक । उसका एक देश होते हुए भी वह निरंतर उसका अतिक्रमण करती है । संकीर्णताओं से उसे घृणा होती है । वह अपनी सह-कलाओं से अपना गहरा नाता रखती है । करुणा के बेहतरीन गायक स्मृतिशेष मन्ना डे ने जो गाया है ,वहाँ से शब्द-रचना को अलग कर लीजिये ,उसका सीधा सीधा असर उनके गायन पर भी दिख जायगा । शब्द-रचना भी वहाँ बड़े सलीके वाली है । और लोक -जीवन की तरंगों का गहरा असर उन पर है । उनके भीतर का नाद उन शब्दों से होकर जाता है जो सही कंठ की कला पाकर अभिभूत करने वाला बन जाता है । लेकिन शब्दकार की गिनती यहाँ भी सबसे पीछे होती है । जैसे आज की कविता में नाद तत्त्व बहुत छीजा हुआ है , इससे भी वह सूखी और नीरस हुई है । जहां भी लोक-स्वर की संगति में वह आई है वहीं उसका नाद-सौष्ठव अपना प्रभाव छोड़े बिना नहीं रहा है । सरसता लाने में शब्द- नाद कवि की बड़ी मदद करता है । छंद बंधी कविताओं में कवि का वर्ण-मैत्री पर बहुत जोर रहता था ।और कवि-गण सभी तरह की कलाओं में रूचि लेते थे । निराला स्वयं संगीत के बड़े जानकार थे और उनकी कविताओं की पढंत में वह कला झलकती थी । गुरुदेव रवीन्द्र के साहित्य में संगीत उसकी आत्मा बन गया है ।मुक्त छंद की कविताओं में वह आए , यह चुनौती है । यह नाद तत्त्व वहाँ है , जहां कवि अपने लोक के नज़दीक है ।
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