बाज़ार में पशु-न्याय चलता है । बड़ी मछली छोटी मछली को खाते देर नहीं लगाती । मनुष्य- न्याय यह नहीं है, वहाँ कमजोर की रक्षा करने का प्रयत्न होता है । पूंजी की व्यवस्था पशु - न्याय से चलती है । इसीलिये समाजवादी व्यवस्था ही पूंजीवादी व्यवस्था का विकल्प हो सकती है , जो व्यक्ति को पशु-न्याय से बाहर निकाल कर मनुष्य-न्याय की तरफ ले जाती है ।
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