फेस बुक की भूमिका पर अक्सर बहस चलती है कि सोसल मीडिया का यह नया और असरदार हथियार है । यह सही है किन्तु फेस बुक से ही सब कुछ नहीं हो सकता । आभासी और वास्तविक दुनिया के द्वद्वात्मक रिश्तों की लय में बात होगी तो व्यक्तिवाद ख़त्म हो सकता है । जो व्यक्ति जन्म से ही व्यक्तिवाद का शिकार है , उसे कोई रास्ते पर नहीं ला सकता । यदि व्यक्ति अपने जीवन-व्यवहार में व्यक्तिवादी तौर-तरीकों से काम निकालता है तो वह फेस बुक पर भी वैसा ही करेगा ।इसका एक पूरा मनोविज्ञान है फिर हर चीज के दो पहलू हैं । आप इससे बच नहीं सकते । एंटी-बायोटिक्स जीवाणुओं को भी रुग्नाणुओं के साथ-साथ मार देती है , फिर भी लोग जरूरत पड़ने पर एंटी-बायोटिक्स लेते ही हैं । सोसल मीडिया के इस नए अवतार को ज्यादा से ज्यादा वस्तुगत बनाइये और आत्मगतता की छोंक लगाइये तो अन्धेरा मिट सकता है । यह सार्वजनिक मामला है , जिसके ऊपर मानवता-विरोधी ताकतों का पहरा भी लगा हुआ है ।
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