Friday 10 January 2014

जो लोग व्यवस्था- परिवर्तन के इंतज़ार में हैं और वर्त्तमान से सीख नहीं लेते , उसकी जरूरतों और जन की आकांक्षाओं का अंदाजा नहीं लगा पाते , वे अपने समय की नब्ज पकड़ने में विफल रहते हैं।  समय की नब्ज , जिसने पहचान ली वह नेतृत्वकारी भूमिका में आ जाता है। फिर उसकी टोपी के नकलची मैदान में उतरने लगते हैं।    भ्रष्टाचार, आम आदमी की जिंदगी को सबसे ज्यादा तबाह करता है और उससे उसकी नैतिकता को धीरे-धीरे छीनता  जाता है।वह  सादगी को छोड़कर  प्रदर्शन के सामंती आभामंडल का शिकार होता जाता है। इसीलिये जब सादगी और औसत नैतिकता की छोटी-सी लहर भी चलती है ,तो वह उसके मन को लुभाती है।  प्रतिरोध,संघर्ष और उसके साथ एक तात्कालिक विकल्प उसीके भीतर से नज़र आता है। अस्वस्थ व्यक्ति को  फौरी राहत की जरूरत होती है। वह व्यवस्था बदलने तक का इंतज़ार नहीं कर सकता। इसीलिये वह अपने भीतर के' नियतिवाद' को नहीं छोड़ पाता।  आम आदमी बहुत दूर की नहीं सोच पाता। वह तात्कालिकता से सर्वकालिकता की और बढ़ता है ,सर्वकालिकता से तात्कालिकता की उल्टी यात्रा नहीं करता।उसको राहत देने में नैतिकता सबसे ज्यादा मददगार होती है।   नैतिकता के सवाल से उसकी  संस्कृति जुडी रहती है।  दुनिया का इतिहास बतलाता है कि व्यक्ति और समाज ने अपनी तरह से अपने समय की नैतिकता के लिए भी बहुत बड़े युद्ध और आंदोलन किये हैं। ऐसे समय में वह रोटी और राजनीति के सवालों को भी भुला देता है।आज देश में जो राजनीतिक-नैतिक  हलचल है और जिसने संकीर्ण सोच और व्यवहार की ओछी राजनीति  पर अपना जो दाव  चल दिया है ,उसका भविष्य मानवता के लिए अच्छा ही होगा , ऐसा मानने में संकोच नहीं होना चाहिए।  अभी इस नैतिकता और सादगी की एक ही विचारधारा है ---स्वराज्य और सुराज्य।  विचारधारा और विश्व -दृष्टि का स्थान यहाँ  रिक्त है ,जिसकी पूर्ति  इसके सहयोगी कर सकते हैं ।   

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