Saturday 4 January 2014

सत्ता के महल के प्रवेश द्वार पर 
सावधान रहना प्रहरी
यहाँ जो आता है
 राग - ध्वज के
रंगों की छाया में
अंगड़ाइयां लेता है
यहाँ खेत-कारखाने नहीं
बड़े- बड़े दुर्गों  से
सामना होता है
यह भूलभुलइयों का मैदान है
बच्चे पहले यहाँ
लुकाछिपी ,आंखमिचौनी और
किलकिलकांटिया का खेल, खेलते हैं
सावधान रहना प्रहरी
यहाँ शतरंज और चौसर की
चालें चली जाती हैं
यह खाला का घर नहीं
यहाँ पानी भी
बावड़ियों के
सबसे नीचे तल  में
ढूंढें से मिलता है
यहाँ एक ऐसा वृक्ष है
जिसके फल देखकर ही
लार टपकने लगती है
इसमें प्रवेश कर लेने पर
 छोटा घर अच्छा नहीं लगता
और न ही छोटी सवारी ,
नारद, भव , बिरंचि , सनकादि भी
यहाँ आकर अपना रास्ता भूल जाते हैं
सावधान रहना
अभी तुमने न कुछ देखा है
न जाना है
कि रास्ता क्या है ?
और उसकी पगडंडियां नहीं हैं
चलो ,बढ़ते चलो
धरती पर मजबूती से
अपने पांवों को टिकाते हुए
कि  छू  सको  आसमां के छोर,
ज़रा चूक हुई कि
नहीं रहोगे कहीं के भी ।  

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